12/12/2004 09:21:13 AM|||Jitendra Chaudhary|||रोशनी के दिल मे बउवा के प्रति प्यार फिर से उमड़ने लगा......लेकिन पहलवान के डर से कुछ लिख नही पा रही थी.......बस सही समय था....तो हम लोगो ने रोशनी की तरफ से बउवा को एक प्रेम पत्र लिखा.....जिसका मसौदा कुछ इस प्रकार था.................. ‍‍‍‍‍‍गतांक से आगे. मेरे प्रिय भोलेराम, जब से तुमको देखा है, मेरा दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो गयी है, दिल की धड़कन बढ गयी है, मुझे हर चीज मे तुम ही तुम नजर आते हो, आटा गूंथती हूँ तो तुम्हारी तस्वीर बन जाती है, रोटियां बेलती हूँ तो तुम्हारा चेहरा बन जाता है, चाट खाती हूँ तो गोलगप्पे मे तुम्हारा मुस्कराता चेहरा नजर आता है. कई दिनो से तुमसे मिलने की आस थी,लेकिन तुम तो जानते ही हो कि मै कितनी बेबस हूँ.काले सांड के आगे बन्धी हुई हूँ,मेरी बेबसी का आलम ये है कि मै अपनो से भी दूर हो गयी हूँ, बस तुम्हारी याद मे, तुम्हारे सपनों मे और तुम्हारे ख्यालो मे अपना समय काट लेती हूँ, लेकिन अब जुदा नही रहा जाता, आ जाओ, आ जाओ, बस तुम आ जाओ, दुनिया के सारे बन्धन तोड़कर, सारी रस्मे को छोड़कर, बस मेरे पास आ जाओ, हम कंही दूर चलकर अपना आशियां बनायेंगे.... इस पत्र को मिलते ही पढकर फाड़ देना, और बचे हुए पुर्जे,इस पत्र को लाने वाले को वापस दे देना. तुम्हे मेरी कसम है, तुम्हारी, और बस तुम्हारी......तुम्हारे जीवन मे उजाला करने वाली रोशनी बजरंगी जिसका अरोड़ा की चक्की पर रोज का आना जाना था, क्यों? अरे का पूछते हो भइया मसाले पिसवाने क्या हमारे घर पर जाता?, ने ये चिट्ठी, बउवा को डिलीवर की, और बउवा को बोला कि चिट्ठी अभी पढकर फाड़ दो, मेरे को फटे हुए पुर्जे वापस दिखाने है, अब जिसके सर पर इश्क का भूत सवार होता है, उसको भला बुरा कहाँ समझ मे आता है, बउवा ने चिट्ठी पढी,दुबारा पढी,तिबारा पढी.....पढी,पढी और फिर पढी....कई कई बार पढी.......उसका दिल तो नही था चिट्ठी को फाड़ने का, प्यार की पहली चिट्ठी,अब तक तो पिछले सारे मामले बिना चिट्ठी पत्री के ही फाइनल मे पहुँच गये थे... कैसे फाड़े, लेकिन बजरंगी के चेहरे के हर पल बदलते हाव भाव देखकर, उसको चिट्ठी फाड़नी पड़ी.इधर बजरंगी लौटा, और हमने बजरंगी को वापसी की चिट्ठी पकड़ाई, फिर वही पढकर फाड़ने वाला फन्डा....इस तरह से चिट्ठी पत्री का सिलसिला जारी रहा.......धीरे धीरे दोनो पंक्षी जाने अनजाने एक दूसरे के प्यार मे पागल हुए जा रहे थे, दोनो एक दूसरे की चिट्ठी मे लिखी बाती को सोच सोचकर और ख्यालों की उड़ानो के जहाज उड़ाकर खूश हो रहे थे. रोशनी ने चाट के बचे पैसो से, सीसामऊ बाजार मे मिलने वाला सस्ता सा परफ्यूम और धूप का काला चश्मा खरीदा, और बजरंगी को भिजवा दिया...उधर बउवा ने भी काफी सारा मेकअप का सामान और ड्रेस रोशनी के लिये भिजवाया......अब बउवा का आटे की चक्की मे ध्यान कम लग रहा था, अब उसकी आटे के टिन की हर डिलीवरी,पहलवान के घर के सामने से गुजरे बिना पूरी नही होती थी, बीच बीच मे भी वो चक्की छोड़कर रोशनी के घर के आसपास दिखने लगा था,लेकिन एक बात तो हुई, रोशनी के प्यार की वजह से बउवा अब रोशनी को छोड़कर,मोहल्ले की बाकी सभी महिलाओ को माता और बहन मानने लगा था. बस सारा का सारा दिन रोशनी के ख्यालों मे खोया रहता था. मोहल्ले के बुजुर्गो ने राहत की सांस ली, और हम लोगो को शाबासी मिली, अब इतना काम तो हमारा आफिशियल ड्यूटी मे शामिल था, हमने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया था, लेकिन हम लोगो का बदला अभी भी बाकी था. आखिर वर्मा ने हमारे बन्दे को पीटा था, सो हमने भी किसी पर जाहिर नही किया, कि हमे आगे का भी काम करना है. इधर इतनी कहानी होने के बाद मोहल्ले मे फिर अफवाहे उड़ने लगी, तो वर्माइन ने वर्माजी को चेताया, कि फिर कुछ मामला गड़बड़ होने वाला है, और फिर कंही हमारी भद ना पिट जाये, वर्माजी भी मोहल्ले मे फैली गतिविधियों की तरफ ध्यान देने लगे, इधर मोहल्ले के कुछ बुजुर्गो ने वर्माजी से भेंटकर उन्हे बउवा की रंगरेलियों औड़ कारगुजारियों का काला चिट्ठा पेश किया, पहले तो वर्माजी मानने को तैयार नही हुए, बाद मे मोहल्ले वालों ने उनको धमकी दी कि आज के बाद अगर बउवा रंगे हाथों पकड़ा गया तो उसका सर गंजा कर,मुंह काला करके और गधे पर बिठाकर पूरे मोहल्ले मे घुमायेंगे. वर्माजी ने उन सभी से वादा किया कि आगे से ऐसा नही होगा.... वर्माजी ने बउवा को तलब किया और जोरदार पिटाई की. उधर पहलवान को भी मोहल्ले वालों ने बुलवाया और सारी बात बतायी और उसको भी ऐसी ही कोई लास्ट वार्निंग दी गयी. अब इश्क पर पाबन्दियां लगओ तो और प्यार बंदिशे तोड़ने लगता है, और आशिक बागी हो जाते है. इधर बउवा ने मजनूं वाला रूख इख्तियार कर लिया, दाढी बड़ा ली, हमेशा रोने जैसा चेहरा बनाये रखता,काम मे मन भी नही लगता था, ऊपर से अरोड़ा जी की नजरे भी कुछ टेढी होने लगी थी..............इधर गर्मियां शुरू हो गयी थी,तपती दुपहरिया मे सभी लोग अपने अपने घर के अन्दर रहते थे, सड़के सुनसान,अब यह सही समय था, लोहा भी गरम था, और टाइमिंग भी एकदम फिट थी.हमने बजरंगी के मार्फत एक फर्जी खत बउवा को भेजा जिसमे रोशनी ने तपती दुपहरिया मे दिन के दो बजे बउवा को अपने घर पर बुलवाया..........और वैसा ही खत, चाट वाले के हाथो रोशनी को,फिर वही फन्डा चिट्ठी पढकर फाड़ने वाला...... बउवा तो वैसे ही तड़प रहा था, रोशनी से मिलने के लिये, तैयार होकर रोशनी के घर पहुँचा......इधर हम लोगों ने बाकायदा ईमानदारी से इस मुलाकात की खबर मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो मे कर दिया, और उन्होने वर्मा और पहलवान को,...... योजनानुसार यह तय हुआ कि उस दिन पहलवान अपने काम पर जाने का बहाना बनाकर जल्दी लौट आयेगा, उसके पास घर की चाभी तो थी ही.वर्माजी ने भी अपने आफिस मे अपनी पत्नी की बीमारी का बहाना बनाकर जल्दी निकलने का प्लान बनाया......वानर सेना ने लाइव टेलीकास्ट का पक्का इन्तजाम किया, और कल्लू पहलवान के घर की दोनो तरफ की छतो पर अपने बन्दे मुस्तैद कर दिये. और पुत्तन धोबी को बोलकर गधे का इन्तजाम भी तैयार रखा, और तो और रामा नाई को भी तैयार रहने के लिये बोला गया,ताकि बाद मे किसी को मुकरने का कोई बहाना ना मिले. बउवा ने तय समय पर रोशनी के घर के तीन चक्कर लगाये, पूरी तरह से ताकीद की, कि कोई देख नही रहा है, बउवा कल्लू पहलवान के घर के अन्दर घूस गया.........हम लोगो ने पक्का किया कि बउवा घर के अन्दर घुस गया है, हमने दस मिनट तक इन्तजार किया.......हम लोगो ने जानबूझ कर दोनो को मिलने का थोड़ा समय दिया, ताकि मामला शिखर वार्ता से कुछ आगे बढे, और लोगो के आने पर बउवा भागने वाली हालत मे तो कतई ना रहे.तो जनाब बउवा अन्दर घुसा, रोशनी उसका इन्तजार कर रही थी, फिर जनाब वही हुआ, जिसका लोगों को पता था, मामला ड्राइंग रूम से बढकर बैडरूम तक पहुँचा, दोनो प्यार के समुंदर मे गोते खाने लगे, (अब मै इससे ज्यादा खुलकर तो नही लिख सकता, सो आप लोग अपने इमेजिनेशन का सहारा लें) अभी मामला प्यार की चरम सीमा तक पहुँचने ही वाला था कि पहलवान, वर्मा और मोहल्ले के बड़े बुजुर्ग,डुप्लीकेट चाभी की मदद से पहलवान के घर अन्दर पहुँचे....... इधर दोनो प्रेमियों को क्या पता था कि उन्हे पूरी तरह से फंसाया गया है, वो तो अपने आनन्द मे खोये हुए थे.दोनो आदम और हव्वा की कन्डीशन मे थे, और कामसूत्र की नयी नयी मुद्राये तलाश रहे थे, जैसी रोशनी को कुछ खटका हुआ, तो उसके तो होंश ही उड़ गये, कुछ नही समझ मे आया तो बस अपने और बउवा के ऊपर चादर ओढ ली.,इधर पहलवान का गुस्सा सातवे आसमान पर था, उसकी इज्जत जो दांव पर लगी हुई थी. बहरहाल सभी लोग रोशनी और बउवा को ढूंढते हुए ड्राइंगरूम से होकर बैडरूम तक पहुँचे जहाँ पर खुला खेल फर्रूखाबादी चल रहा था, सबसे पहले तो पहलवान ने रोशनी तो दो चार झापड़ लगाये और फिर बड़े बुजुर्गे ने रोशनी को कपड़े पहनने की इजाजत दी और उसको कमरे से बाहर ले गये.....इधर बउवा की जबरदस्त धुनाई की गयी, पिछली बार जो लोग चूक गये थे वो इस बार आये और इस सामाजिक कार्य मे अपना योगदान दिया. पिटने वाला वही था, जगह वही थी, पीटने वाली भी लोग भी लगभग वही थे, बस इस बार दिन के उजाले मे पिटाई हो रही थी, और इस बार पता था कि कौन पिट रहा है.ऊपर से बउवा अपनी छटी के दिन वाली ड्रेस मे था..... जैसे तैसे बउवा अपने को छुड़ाकर छत की तरफ भागा, मेन दरवाजे की तरफ तो लोगो की लाइन लगी हुई थी...हमको पता था कि छते मिली हुई है और बउवा वहाँ से भागने की कोशिश कर सकता है, छत पर हमारी वानर सेना डेरा जमाये हुए थी, सो वहाँ पर उसको,धूप मे जमकर धुना गया, और फिर पीटते पीटते हुए उसको फिर नीचे ले आये, जहाँ हलवाई से लेकर पनवाड़ी, चक्की वाले से लेकर धोबी और यहाँ तक कि रिक्शेवालों ने भी उसकी जमकर पिटाई की.पहलवान ने बोला कि इसको पुलिस मे दे दिया जाय, तो मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो ने समझाया कि पुलिस मे मामला देने से तुम्हारी ही इज्जत ज्यादा उछलेगे, अभी तक तो मामला मोहल्ले तक का है, अखबार मे छपने के बाद तो पूरे शहर को पता चल जायेगा, सो मामला यहीं पर निबटा देते है, तुरन्त रामा हेयर सैलून वाले को बुलवाया गया, जो पहले से ही हमारे बुलावे पर मोहल्ले मे हाजिर था, बउवा को आधा गन्जा किया गया, चेहरा ज्यादा अच्छा लगे और कालिख ठीक से पुत सके इसलिये दाढी भी बनवायी गयी, इस कार्यक्रम के दौरान भी उसकी पिटाई होती रही, नाई ने भी बचाने बचाने मे दो चार धर दिये.फिर कालिख मंगवाई गयी, और बाकायदा मोहल्ले की औरतों, जिसमे वर्माइन को सबसे आगे रखा गया, ने बउवा को कालिख पोती. फिर रोशनी को बुलाकर, बउवा को राखी बंधवायी गयी, और फिर पुत्तन धोबी के गधे पर बिठाकर बउवा को पूरे मोहल्ले मे घुमवाया गया.......बउवा के गले मे भाई लोगों ने एक तख्ती भी डाल दी, जिसपर लिखा था, "मोहल्ले के मजनूं का हाल ऐसा ही होता है" किसी को भी नही पता था, कि बउवा के इस हाल मे हमलोगो का कितना योगदान है, यहाँ तक कि दोनो लैला मजनूं को भी नही,उस दिन के बाद से वर्माजी की फैमिली कभी भी किसी मोहल्लेवालो से अकड़कर नही बोली.....क्योंकि जब भी कुछ अकड़ते लोग बउवा कान्ड को छेड़ देते...........इस तरह से बउवा पुराण का यह अध्याय यहाँ पर समाप्त होता है, बोलो मोहल्ला पुराण की............................जय! (पाठकों की मांग पर बउवा पुराण आगे भी जारी रहेगा, लेकिन दूसरे मामले शुरू होंगे और नये अध्याय होंगे.......) |||110283271320893905|||बउवा पुराण:भाग दो12/9/2004 01:08:35 PM|||Jitendra Chaudhary|||माफी चाहूँगा, कि बउवा के प्रेम पत्र वाला किस्सा अधूरा छोड़ा है..... लेकिन इस बीच कुछ घटनाये हुई, जिस पर लिखने के लिये हाथ मचल रहे है.अभी कल ही दो चार बाते सामने आयी है, जिस पर हमने मिर्जा साहब की प्रतिक्रिया दर्ज की है, पहली घटना था, कि बिहार के हाईकोर्ट ने बिहार की जेलो पर छापा मारने का आदेश दिया, बहुत अच्छी बात है.....जेलो से ही अपहरण और फिरौती का धन्धा चल रहा था, और बिहार सरकार यह बात मानने को तैयार ही नही थी.मिर्जा साहब का कहना है, देखो बरखुरदार! जब तक बिहार सरकार के मंत्रियो के यहाँ छापा नही पड़ता और राजनेताओ और अपराधियों के गठजोड़ का भान्डाफोड़ नही होता, तब तक कुछ नही हो सकता. वैसे भी उनके मंत्रियो और अपराधियो मे फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल है, कई बार जेल मंत्री टीवी पर दिखा तो हम समझे कि किसी अपराधी का इन्टरव्यू दिखाया जा रहा है. इन छापों के बाद तो सरकार अपने हाथ धो लेगी, और बोलेगी कि जेल अधिकारी ही दोषी है, और एक आयोग बैठा दिया जायेगा, जो अगले दस बारह साल तक सरकार की रोटियां तोड़ेगा, पांच सितारा होटलों मे बैठके करेगा और रिपोर्ट के नाम, इक वाहियात सा चिट्ठा पकड़ा देगा, जिसको पढने के लिये एक और आयोग बनेगा.सो किसी चीज की उम्मीद करना बेकार है, हाँ अपराधियों से निपटने के लिये सामूहिक चेतना ही आवश्यकता है, पब्लिक अगर मिल कर जेल पर धावा बोले और दो चार अपराधियों को ऊपर पहुँचाये तो बात समझ मे आती है. या फिर कोर्ट मे नागपुर वाला काण्ड दोहराया जाय. तब कंही जाकर अपराधियों को डर लगेगा, नही तो बिहार से व्यापारियों,डाक्टरो और अन्य पेशेवर लोगो का पलायन तो चालू है ही.... दूसरी घटना थी, कि लैपटाप इस्तेमाल करने से पुरूषो की प्रजनन क्षमता को खतरा है....... मिर्जा का कहना है कि आज संजय गान्धी जिन्दा होता हो कितना खुश होता, अपनी माता सलाह किये बिना और बिना पूछे , लाखो करोड़ो लैपटाप का आर्डर कर देता, लोगो को जबरदस्ती लैपटाप दिया जाता, बस कन्डीशन यही होती कि चौबीस घन्टे लैपटाप, अपनी गोद मे ही रखना............कितना अजीब लगता, जब मुंगेरीलाल रिक्शे पर बैठकर लैपटाप से "मेरा पन्ना" पढता. दूसरी तरफ देखा जाये तो दरअसल पूरा मामला तो तापमान का है, इसलिये क्यो ना लोगों के घरो मे एक ताप कक्ष बनाना अनिवार्य कर दिया जाये, जब भी बन्तासिंह का मूड बने, सरदारनी को बोलेंगे , "मै हुणे अभी ताप कक्ष तो होके आन्दा हूँ, तुस्सी तैयार रहो". तीसरी घटना थी,पिछले कुछ दिनो से अम्बानी बंधुओ मे आपसी सर फुट्टवल की, मिर्जा का कहना है मामला कुछ भी नही है, बस दिक्कत है तो दोनो भाइयो के आमने सामने बैठने की, सारा किस्सा दलालो के द्वारा सामने आ रहा है, दोनो आपस मे बैठ जाय, तो मामला चुटकियों मे सुलझ जायेगा, बशर्ते कोई बिचौलिया और चमचे आसपास ना हो. धीरूभाई ने यह कभी भी नही सोचा होगा कि उसकी औलाद ही उसके सपने को तोड़ देगी.......वैसे भी देखा जाय तो दोनो भाइयो के झगड़ने मे कइयो का फायदा है, कुछ लोग चाहते भी यही है, दोनो भाइयो को अपने दिल की बात सुननी चाहिये और अखबारबाजी से बचना चाहिये और जितनी जल्द हो सके एक मुलाकात कर लेनी चाहिये. और आखिरी घटना थी न्यूज चैनलो द्वारा दिखाया जा रहा अपराध सम्बंधित कार्यक्रम....आजतक वालो ने एक प्रोग्राम क्या शुरू कर दिया, सारे चैनलो ने भर भर कर अपने अपराध के प्रोग्राम देने शुरु कर दिये, यहाँ तक तो ठीक ही था, मगर इन अपराध सम्बंधित कार्यक्रमो के सारे के सारे प्रस्तुतकर्ता खुद अपराधी दिखते है, बस अजीब तरह से बोलना आना चाहिये, दाढी बढी हुई हो तो सोने पे सुहागा, और चेहरे पर जरूर क्रूरता दिखनी चाहिये..........नही तो लोगो को डर कैसे लगेगा... अभी कुछ दिन पहले माँ अपने बच्चे को डरा रही थी, जल्दी से सो जाओ नही तो मै फलाने चैनल पर क्राइम प्रोग्राम के प्रस्तुतकर्ता को बुला दूंगी. और अभी अभी मिली खबर के अनुसार, बिहार के सोनपुर के पशु मेले मे चलने वाले कैबरे डान्स को पटना हाईकोर्ट ने बन्द करवाने के आदेश दे दिये है......ये नग्न नाच काफी दिनो से चल रहा था..और सरकार,आयोजक और किसान सभी खुश थे........मिर्जा की प्रतिक्रियाः "बेचारे मेले मे आने वाले किसानो का क्या होगा, उनकी जागरूकता के लिये ही तो यह कैबरे का आयोजन कराया गया था, आयोजक तो वैसे ही परेशान थे, कि पशु मेले की लोकप्रियता दिन पर दिन घटती जा रही है, मेला तो बस अब किताबो मे ही दिखता है, असल मे खरीद फरोख्त मे काफी कमी आ गयी है, इसलिये ऐसे हथकन्डो का सहारा लिया जा रहा है, ताकि लोग मेले मे आ सके, वो सहारा भी जाता रहा". अभी इस मुद्दे पर बिहार सरकार का स्पष्टीकरण आना बाकी है. आजकल लगता है बिहार मे शासन की जिम्मेदारी, राबड़ी सरकार से छिनकर, हाईकोर्ट के पास आ गयी है, क्योंकि राबड़ी सरकार तो हमेशा अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर, सोती रहती है. |||110258345525529680|||नयी घटनाये और मिर्जा की प्रतिक्रिया12/8/2004 08:49:36 AM|||Jitendra Chaudhary|||भाईलोगो ने कुवैत ने नजारों की फरमाइश की है, मैने कुछ फोटो खींची थी..जिनको मै आपको दिखाना चाहता हूँ. कृप्या यहाँ पर क्लिक करें. इस बारे मे आपको सुझाव और आलोचनाये सादर आमन्त्रित है. |||110248515685542905|||कुवैत के नजारे12/7/2004 09:23:21 PM|||Jitendra Chaudhary|||
उस दिन की घटना के बाद वर्माजी ने बउवा को अपने घर पर रख तो लिया लेकिन उस बार ढेर सारी पाबन्दियां लगा दी..... साथ ही ये भी ताकीद कर दी कि मोहल्ले के लड़कों से ना उलझे और किसी भी तरह से पहलवान के घर की तरफ ना जाये. अब यहाँ पर पहलवान की बीबी का जिक्र ना करना,उसके साथ बहुत नाइन्साफी होगी...अभी तक हमने उसका नामकरण नही किया था,सो इस कमी को भी पूरा कर देते है. सभी लोग उसको रोशनी के नाम से जानते थे.तो जनाब इस घटना के बाद रोशनी के जीवन मे फिर अन्धकार छा गया...क्योंकि पहलवान ने उस पर बहुत जबरदस्त पहरेदारी शुरू कर दी थी, एक मिनट के लिये भी उसको अकेला नही छोड़ता था.......सिवाय शाम को चाट वाले ठेले के आने पर........ अरे भाई, पहलवान को चाट से बहुत चिढ थी, और रोशनी बहुत बड़ी चटोरी थी........गोलगप्पे खाने मे उसका तो कोई सानी नही था..कई बार पहलवान ने समझाया...मगर नही....रोजाना शाम को चाटवाला उसके घर से ही बोनी शुरू करता था, उसके बाद ही कंही और जाता था. उधर बउवा की नौकरी, मोहल्ले के अरोड़ा आटा चक्की मे लग गयी, नही नही भाई ये अतुल अरोरा वाली चक्की नही थी......ये तो कोई और जनाब थे.बउवा की ड्यूटी थी, गेंहू पिसवाने वाले के लिये लोगो के घर से गेहूँ लाना, तौलवाना,पिसवाने के मशीन का सुपरविजन करना, आटा तौलवाना और आटे के टिनो को घर पर छोड़कर आना...... पहले पहल बउवा को काम पसन्द नही आया, लेकिन बाद मे जब लोगो के घर मे बहू बेटियो से मुलाकात होने लगी तो उसको इस काम मे मजा आने लगा, और वो मन लगाकर और दौड़ दौड़कर यह काम करने लगा, चक्की वाले अरोड़ा जी उसकी इस लगन को देखकर बहुत खुश थे और तरक्की के रूप मे उसको एक साइकिल भी लेकर दिये...... इधर बउवा तो पुराना खिलाड़ी था, फिर शुरु हो गया था, अपने पुराने काम धन्धे पर.....मोहल्ले मे उसकी शिकायते मिलने लगी थी, अक्सर लोगो के घरो मे घुस जाता था, अब तो उसके पास बहाना भी था...कोई भी कुछ कह नही पाता था.दूसरी तरफ मोहल्ले के लड़के भी बउवा को भुला चुके थे, जब तक हमारे कानो मे बउवा की शिकायते नही पहुँची... बउवा तो अपने काम मे रम गया और मोहल्ले के लड़को को भूल गया , लेकिन वर्माजी चुप बैठने वालों मे कहाँ थे, एक दिन हमारे ग्रुप के लड़के को पकड़ कर जम कर पिटाई कर दी, उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वो वर्मा की स्कूटर पर हाथ रखकर खड़ा था.. और वर्मा को शक था कि उनके स्कूटर के पंचर होने मे इस लड़के का हाथ है............अब इस पिटायी कान्ड से हमने वर्मा एन्ड कम्पनी के सारे चिट्ठे दोबारा खोलने शुरू कर दिये., और हम भी फिर इन्तजार करने लगे..... अच्छे मौके का.हमारी टीम की बैठक हुई और हमने प्रण किया कि वर्मा से बदला लेकर रहेंगे.....इधर बउवा की शिकायते ज्यादा आने लगी तो मोहल्ले के बुजुर्गो ने भी हमे चेताया कि हम लोगो के होते हुए, बउवा ऐसी हरकते कैसे कर रहा है.बस फिर क्या था.... हम लोगो ने बजरंगी चाट वाले को पटाया.....और क्योंकि वही लिंक था, रोशनी से बात करने का, इसके अलावा तो कोई और रास्ता नही था. हमने बजरंगी को बोला कि रोशनी को कुछ दिन चाट फ्री मे खिलाई जाय, और अगर रोशनी पैसे देने की कोशिश करे तो उसको बताया जाय कि बउवा ने चाट के पैसे पहले से ही दे दिये है.ऐसा लगभग एक हफ्ते तक चला...हफ्ते के आखिरी दिन चाट वाले ने हम लोगो द्वारा भेजी गयी एक पर्ची रोशनी के हाथ मे थमायी,जिसमे लिखा था अगर कुछ कहना है तो चाट वाले को लिख कर दे देना, तुम्हारा दीवाना.................... रोशनी के दिल मे बउवा के प्रति प्यार फिर से उमड़ने लगा......लेकिन पहलवान के डर से कुछ लिख नही पा रही थी.......बस सही समय था....तो हम लोगो ने रोशनी की तरफ से बउवा को एक प्रेम पत्र लिखा.....जिसका मसौदा कुछ इस प्रकार था..................
‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ शेष अगले अंक मे
|||110244394747334320|||बउवा पुराण12/5/2004 09:04:13 AM|||Jitendra Chaudhary|||आप लोग पूछेंगे ये टप्पेबाजी क्या होती है? टप्पेबाजी एक कला है कि जिसमे लोग बातो बातो मे आपकी जेब से पैसे गायब कर लेते है, और आपको हवा तक नही लगती....यह कला कानपुर मे फली फूली और विकसित हुई, और अब पूरे देश मे अपनी जड़े फैला रही है.विश्वास नही आता ना... आइये आपको अपने साथ घटित एक सच्चा किस्सा सुनाते है, ये किस्सा करीब पांच साल पुराना है, लेकिन इसी तरह से लोग आज भी टप्पेबाजी के शिकार हो रहे है. बात उन दिनो की है, जब मै कानपुर मे रहता था, एक दिन मोटरसाइकिल से माल रोड से वापस घर की तरफ आ रहा था, वी.आइ.पी. रोड से, अचानक मेरे साथ साथ एक स्कूटर वाला चलने लगा, जिसके पीछे एक बन्दा बैठा हुआ था, सफेद कुर्ता पजामा पहने, उसने स्कूटर पर बैठे बैठे ही मुझसे चिल्लाकर कहा कि "आप ने पान की पीक थूकी है जो मेरे कुर्ते पर लगी है, इसको साफ करिये"......मैने कभी ना पान खाने की आदत पाली ना कभी पान मसाले का पाउच खोला........मैने ड्राइव करते करते ही बोला, "मैने तो नही थूका, किसी और ने थूका होगा."...‌और गाड़ी की स्पीड बढा दी....वो जनाब भी बहुत चालू किस्म के थे, उन्होने अपनी गाड़ी की स्पीड तेक करी, और अगली बत्ती (लाल इमली वाली) पर अपनी गाड़ी मेरी गाड़ी के आगे लगा दी. अब लाल बत्ती थी तो मै क्या करता, मुझे भी गाड़ी रोकनी पड़ी....वो जनाब उतरे और यह वार्तालाप हुआः मैः क्या बात है? टप्पेबाजःआपने मेरे कुर्ते पर थूका है, इसको साफ कीजिये. मैः मैने तो नही थूका है, और आपका ये दाग भी पुराना दिख रहा है. टप्पेबाजः देखिये मै आपसे शराफत से कह रहा हूँ कि इसे साफ कर दीजिये.....नही तो आप मेरे को जानते नही है. मैःनही साफ करता...क्या उखाड़ लोगे......तुम्हारे जैसे तीन सौ पैंसठ रोज मिलते है. टप्पेबाजः देखिये मै बब्बन गिरोह का आदमी हूँ, देखिये (मेरा हाथ खींचकर अपनी कमर पर लगाते हुए) यहाँ कट्टा भी लगा है मैने अन्दाजा लगाया और पाया कि वो कट्टा तो नही था, लेकिन उसके जैसा कुछ था, मेरा थोड़ा सा आत्मविश्वास बढ गया और मे बोलाः . मैः बेटा ये कट्टे वगैरहा खिलौने है, अपने पास रखो और पतली गली से निकल लो, मै भी रामबाग का रहने वाला हूँ, और इन्ही सब के बीच पला बढा हूँ, मेरे को कट्टे का जोर मत दिखाओ. टप्पेबाजःअभी दो दिन पहले आप के जैसे ही एक जनाब थे, बहुत उछल रहे थे, यंही पर लिटा लिटा कर मारा था, आप जैसे ही जीन्स पहने थे(मेरी जीन्स और बेल्ट पर हाथ लगाते हुए) और (बेल्ट को दूसरे हाथ से पकड़ कर देखते हुए बोला) "आप जैसे ही बेल्ट लगये हुए थे" काफी देर बकझक होती रही.......टाइम भी बहुत वेस्ट हो रहा था... अब मेरे को भी गुस्सा आने लगा था....मैने खालिस कानपुरिया अन्दाज मे मैने गाड़ी को साइट स्टैण्ड पर लगाया और एक रोजमर्रा मे दी जाने वाली गाली देते हुए,उसका गिरहबान पकड़ लिया और बोलाः तुम जबान की भाषा नही समझते हो क्या?, दूँ क्या दो चार, साले कट्टा लगाकर अपने आपको दादा समझते हो, मेरे को जानते नही.........मेरा इतना कहते ही, वो ढीला पड़ गया... और बोलाःभाईसाहब माफ कर दो, और मेरे घुटनो को पकड़ कर बोला... गलती हो गयी और हाथो को हाथो मे लेकर माफी मांगने लगा... और बोला भाईसाहब आप जाओ, लगता है कि किसी और ने ही थूका था. मै हैरान था, कि अगला बन्दा जो अभी कट्टे का जोर दिखा रहा था, अचानक ढीला कैसे पड़ गया, और माफी कैसे मांगने लगा....मैने दिमाग पर ज्यादा जोर नही दिया, अपनी गाड़ी स्टार्ट की,वहाँ से निकला और पेट्रोल भरवाने के लिये,चुन्नीगंज वाले पेट्रोल पम्प पर रूका, , जैसे से पीछे वाली जेब मे हाथ डाला, तो पाया कि पर्स गायब.......................... मै समझ गया, उस टप्पेबाज ने मेरे को बातों मे लगाकर , मेरा पर्स छुवा दिया है, यह मेरे साथ पहली घटना थी, आज सेर को भी सवासेर मिल गया था,लेकिन अब क्या हो सकता था, मै पहले वापस उसी चौराहे पर गया, अब वो क्या मेरा इन्तजार करता होगा?... निकल चुका था, पतली गली से.... अब आगे की कहानी भी सुन लीजिये..........फिर मै पास के थाने पहुँचा.... आदत के अनुसार थानेवालो ने मुझसे ही हजार सवाल कर मारे........ कि उस रोड से क्यों जा रहे थे, पर्स मे क्या क्या था, और तो और मेरी ही तलाशी ले डाली......फिर आपस मे कहने लगे वो एरिया तो हमारे थाने मे आता ही नही है..........लगे हाथो उन्होने मेरे को सलाह भी दे डाली कि चुपचाप घर जाओ, पर्स तो अब वापस नही मिलने वाला, वैसे मेरे पर्स मे रूपये ज्यादा नही थे, लेकिन कुछ कागज और पर्चिया काम की थी.....मेरा दिमाग तो वैसे ही भन्नाया हुआ था, मैने बोला कि टप्पेबाजो को पकड़ना तो दूर और आप लोग जो रिपोर्ट दर्ज करवाने आता है उसी को परेशान करते है. पुलसिये ने मेरे को अपने कानपुरी अन्दाज मे कच्ची कच्ची गालियां सुनाई, और मेरे को थाने से जाने के लिये कहा...........मै भी अड़ गया मैने मैने पुलिसये से कहा कि मेरे को एक फोन करना है...गाड़ी मे पेट्रोल नही है, घर वालो से पैसे मंगाने है........पुलिसिये ने रूखे अन्दाज से कहा कि बाहर पीसीओ से कर के आओ, मैने बोला जेब मे एक धेला नही है, फोन कैसे करूंगा? पुलिसिये ने कहा, "ठीक है,इन्तजार करों",और थोड़ी देर बाद फोन,मेरी तरफ बढाते हुए बोला... लेकिन जल्दी कर लेना........मैने समय ना गवाते हुए फटाक से अपने रोटरी क्लब के प्रेसीडेन्ट को फोन मिलाया और उसको पूरी कथा बताई, उसने मेरे से पूरी डिटेल पूछी, थाने का नाम पूछा और बोला फोन रखो और वंही रूको हम सब वहाँ पहुँच रहे है, मेरे फोन रखने के तुरन्त बाद, प्रेसीडेन्ट ने शायद किसी वरिष्ट पुलिस अधिकारी को फोन मिलाया होगा, और उस पुलिस अधिकारी ने थाने मे फोन किया.......... अधिकारी का फोन आने के बात तो थाने की तो फिजां ही बदल गयी.......जहाँ पर सारे पुलिसिये जो मुझे देख कर गुर्रा रहे थे, अचानक स्माइल मारने लगे.........और आंखो मे जहाँ नफरत की भावना थी, वहाँ अचानक प्रेम और वात्सल्य दिखने लगा और जनाब, सारे पुलिसियों को टोन बदल गयी... अभी तक मै खड़ा था, एक पुलिसिये ने फटाफट मेरे लिये कुर्सी लगायी, साफ करते हुए बोला आपने पहले क्यों नही बताया कि आप फलाने साहब के पहचान वाले हो......वगैरहा वगैरहा...... तुरन्त मेरे लिये समोसे के साथ चाय का आर्डर हुआ, टन्न से समोसे के साथ चाय भी आ गयी.....थानेदार मेरे को अपने कमरे मे ले गया....आराम से बिठाया....और पूरी बात सुनी और मेरी रिपोर्ट दर्ज हुई, इस बीच वो पुलिस अधिकारी और रोटरी क्लब के सारे पदाधिकारी भी वहाँ पर पहुँच गये,बस फिर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का भाषण और थानेदार का यस सर,ओके सर, ठीक है सर.....वगैरहा वगैरहा..... और फिर बाकायदा थानेदार मेरे को अपनी जीप मे लेकर वारदात वाली जगह पर गया.........या कहो शहर भ्रमण करवाया............................ मेरे को पता था, होना हवाना कुछ है नही........ इसलिये मै भी पुलिस अधिकारी को अपना फोन नम्बर देकर, घर को लौट आया.... करीब दो हफ्ते बाद थाने से फोन आया...... मै थाने पहुँचा, थानेदार ने अपनी दराज से पर्स निकाल कर टेबिल पर रखते हुए पूछा, "ये आपका पर्स है?" मैने देखा, और पाया कि पर्स मे सभी चीजे सही सलामत थी, सिवाय रूपयों के... मैने कहा "हाँ जी, मेरा ही है,लेकिन इसमे से पैसे गायब है, इसमे पूरे 320 रूपये थे इसमे" , थानेदार बोला, "पर्स वापस मिल रहा है, क्या ये कम है, इसी को गनीमत समझिये.... आज तक ये पहला मौका है, कि हम किसी को बुलाकर पर्स वापस कर रहे है." मैने भी चुपचाप पर्स को अपनी जेब मे रखा, थानेदार से हाथ मिलाया और निकल पड़ा अपने घर की तरफ. |||110222677364146313|||टप्पेबाजी और पुलिस का व्यवहार12/2/2004 08:05:49 AM|||Jitendra Chaudhary|||‍हमारे मिर्जा साहब की स्पेशल फरमाइशो पर इन्हे भी देखियें.....
मै रोया परदेस मे भीगा मां का प्यार दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार आंखो भर आकाश है बाहों भर संसार -निदा फाजली
पूरा यहाँ पढिये http://www.geocities.com/sumankghai/nida22.html
नज्म उलझी हुई है सीने मे मिसरे अटके हुए है होठों पर उड़ते फिरते है तितलियों की तरह लफ्ज कागज पर बैठते ही नही कब से बैठा हूँ मै जानम सादे कागज पे लिख के नाम तेरा बस नाम ही मुकम्मल है इससे बेहतर भी नज्म क्या होगी -गुलजार साहब
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नही छोड़ा करते वक्त की शाख से लम्हे नही तोड़ा करते जिसकी आवाज मे सिल्वट हो, निगाहो मे शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालो के लिये दिल नही थोड़ा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रूख नही मोड़ा करते
-गुलजार साहब
|||110196401799195134|||मिर्जा की फरमाइश12/1/2004 07:47:11 PM|||Jitendra Chaudhary|||
कल रात को कुवैत मे काफी बारिश हुई थी....नींद खुल गयी,तो अचानक मेरे को गुलजार साहब की यह नज्म याद आयी
शाम से आंख मे नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है दफन कर दो हमे कि सांस मिले नब्ज कुछ देर से थमी सी है वक्त रहता नही कहीं छुपकर इसकी आदत भी आदमी सी है कोई रिश्ता नही रहा फिर भी एक तस्लीम लाजमी सी है ‍-गुलजार साहब आज सुबह सुबह ही इन्टरनेट पर गुलजार साहब की यह नज्म दुबारा पढी, कई कई बार पढी,फिर कोई याद आया, फिर मौसम गमगीन हुआ,
फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये तुम याद आये फिर पत्तो की पाजेब बजी तुम याद आये,तुम याद आये.
क्या कभी आपको भी कोई याद आता है, इस तरह....................
|||110191981143756040|||यादें